उस सूने रास्ते में वो पेड़ था. जून की दोपहरी और सावन की बरसातों में उसने बहुत से राहियों की मदद की.
उन्ही शरणार्थिओं में इक महात्मा भी थे. उन्होंने वहाँ धूनी रमाई.
जब महात्मा जी चले गए तो कुछ भक्तों ने वहाँ छोटा सा इक मंदिर बनवाया. लोग आने लगे. जमघट बढ़ा.
भक्त बढे तो मंदिर को बड़ा करने के लिए उस पेड़ को काटना पड़ा.
बाद में भक्त ये चिंतन करते थे की जाने क्या देखकर महात्मा जी ने इतनी दूर धूनी रमाई.
Photo Courtesy: Flickr
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