वो नास्तिक था. बेरोजगार. आखिरकार मंदिर में पंडित की नौकरी कर ली.
हम संपूर्ण आते हैं, अंततः 'शेष' रह जाते हैं... We come as a whole, what goes back is our remnant...
वो नास्तिक था. बेरोजगार. आखिरकार मंदिर में पंडित की नौकरी कर ली.
उस सूने रास्ते में वो पेड़ था. जून की दोपहरी और सावन की बरसातों में उसने बहुत से राहियों की मदद की.
उन्ही शरणार्थिओं में इक महात्मा भी थे. उन्होंने वहाँ धूनी रमाई.
जब महात्मा जी चले गए तो कुछ भक्तों ने वहाँ छोटा सा इक मंदिर बनवाया. लोग आने लगे. जमघट बढ़ा.
भक्त बढे तो मंदिर को बड़ा करने के लिए उस पेड़ को काटना पड़ा.
बाद में भक्त ये चिंतन करते थे की जाने क्या देखकर महात्मा जी ने इतनी दूर धूनी रमाई.
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वो बहुत कमीना लड़का था. हर फ्रेंडशिप डे पे क्लास की सारी लड़कियां उसे बैंड बांधती थी.
उसकी कोई बहन नहीं थी.
भाई सरल था. उसकी कोई बहन नहीं थी. हर रक्षा बंधन पे वही सारी लड़कियां उसे राखी बांधती थी.
भाई समझ नहीं पाता था कि किसमें ज्यादा कमीनापन है.
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उसे अपने हुनर पर घमंड था. कभी ऐसा नहीं हुआ कि वो नाकामयाब लौटा हो.
कमबख्त हर बार लौट भी आता था.
परसों भी अपना काम कर रहा था. जैसे ही बम का टाइमर सेट किया वैसे ही उस पे नज़र पड़ी.
वह उसे बरसों बाद देख रहा था.
वह जान गया की इस बार वो हर सूरत में नाकामयाब रहेगा.
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१
वो अनपढ़ था. शिक्षा उसने आइनों से हासिल की थी.
साफ़, सीधा था. झूठ नहीं बोलता था.
बिंब और प्रतिबिम्ब से बराबर दूरी बना के रखता था.
इक दिन चकनाचूर हो गया.
२
उसे अपने ही प्रतिबिम्ब से प्यार हो गया था.
वो उसके करीब आया. वो उससे मिलना चाहता था.
उसे उसके प्रतिबिम्ब से मिलाने के वास्ते, आइना टूट गया.
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